रामपुर और उसके नवाबों का इतिहास
रावेंद्र प्रताप सिंह
रामपुर भारतीय इतिहास का गौरव है, रामपुर का इतिहास जितना प्रासंगिक है, उतना ही नवाबों के शहर से भी संबन्ध रखता है. रामपुर और उसके नवाबों ने देश की संस्कृति और विचारधारा पर लम्बे समय तक चलने वाली छाप छोड़ी है। भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान यह शहर पहली एक रियासत थी, जहां पर राजपूतों, मराठाओं, रोहिल्लाओं और नवाबों का शासन था और स्वतंत्र भारत से पहले यह स्वयं एक राज्य था. इससे पहले 1947 में इसे भारतीय गणराज्य की सहमति दी गई थी और 1950 में यह संयुक्त प्रांतों के साथ मिल गया था।
रामपुर नाम :- रामपुर अपनी धार्मिक पृष्ठभूमि और विविध इतिहास के बावजूद, रामपुर (जिले) के नाम से बुलाया या जाना जाता है, जो देश के अधिकांश शहरों को दिए जाने वाले सामान्य नामों में से एक है. रामपुर एक जिला है जिसमें चार गावों का समूह शामिल है इसे कटेहर कहा जाता है.नवाबों के शासनकाल के दौरान, रामपुर के पहले शासक नवाब फ़ैजुल्लाह खान ने शहर का नाम बदलकर फैज़ाबाद करने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन देश में कई अन्य स्थानों को भी यही नाम दिया गया था, इसलिए इसे फैज़ाबाद की जगह मुस्तफाबाद कर दिया गया और इसे आमतौर पर रामपुर भी कहा जाता था।
रामपुर की विरासत :- रामपुर का ज्ञात शाही इतिहास बारहवीं शताब्दी का है, जो राजपूतों के शासन से शुरू होता है और नवाबों की अंतिम विरासत के साथ समाप्त होता है. रामपुर के शासकों का क्षेत्र की वास्तुकला पर अलग प्रभाव पड़ा है। इमारत और स्मारक मुगल प्रकार की वास्तुकला की उपस्थिति दर्शाता है। इमारतों में से कुछ बहुत पुरानी हैं सबसे अच्छी तरह से डिजाइन स्मारक में से एक रामपुर का किला है ( रामपुर का किला)। पूर्व में यहाँ रजा लाइब्रेरी या हामिद मंज़िल, शासकों के महल रह चुके है। यह ओरिएंटल पांडुलिपियों का एक बड़ा संग्रह है। इमामबाड़ा भी किले में है । जामा मस्जिद वास्तुकला के बेहतरीन नमूना है । यह कुछ हद तक दिल्ली में जामा मस्जिद जैसी दिखती है और एक सुंदर इंटीरियर है। इसको नवाब फैज़ुलाह ख़ान ने बनवाया था। यहाँ अध्यन के लिए एक अनूठा मुगल स्पर्श है। वहाँ मस्जिद के लिए कई प्रवेश द्वार हैं। यहाँ मुख्य द्वार पर एक इनबिल्ट क्लॉक टॉवर ,(एक बड़ी घड़ी है ) जनपद में कई प्रवेश बाहर के लियें निकलें हैं.
रामपुर रज़ा लाइब्रेरी (पुस्तकालय ) :- रामपुर रज़ा पुस्तकालय दक्षिण एशिया के महत्वपूर्ण पुस्तकालयों में से एक है.विभिन्न धर्मों, परम्परओं से सम्बंधित पुस्तकों आलावा यह इंडो-इस्लामिक ज्ञान और कला का खजाना है। इस पुस्तकालय की स्थापना नवाब फैजुल्लाह ख़ान द्वारा 1744 में की गई थी। रामपुर के नवाब विद्या और कला के महान संरक्षक थे, विद्वान उलेमाओं (ज्ञानी), कवियों, चित्रकारों, काशिदाकारों (कपड़े पर सुई और धागा या सूत के साथ अन्य सामग्री की हस्तकला ) और संगीतज्ञों पर उनकी महान अनुकम्मा थी. भारत की स्वतंत्रता के बाद जब रामपुर विरासत का विलय भारत गणराज्य में हो गया तो इस पुस्तकालय का संरक्षण एक न्यास के अंतर्गत आ गया जिसकी स्थापना 6 अप्रैल 1951 को हुई थी। इस पुस्तकालय में अरबी, फ़ारसी, पश्तों, संस्कृत, उर्दू, हिंदी और तुर्की भाषाओं की 17,000 पांडुलिपियाँ मौजूद है. इसके आलावा इसमें विभिन भारतीय भाषाओं में चित्रों और ताड़ पत्रों का अच्छा संग्रह भी है। साथ ही साथ विभिन्न भारतीय और विदेशी भाषाओं के लगभग 60,000 मुद्रित पुस्तकों का संग्रह भी यहाँ उपलब्ध है।
रज़ा लाइब्रेरी (पुस्तकालय) रामपुर
भारत सरकार के पूर्व शिक्षा मंत्री सैय्यद नरुल हसन द्वारा इस पुस्तकालय को 1 जुलाई 1975 को पुस्तकालय अधिनियम के तहत संसद में लाया गया.
पुस्तकालय में 30,000 से अधिक पुस्तकों और कई भाषाओं की पत्रिकाओं का संग्रह है.
रज़ा लाइब्रेरी (पुस्तकालय) दक्षिण एशिया के मुख्या पुस्तकालयों में से एक है.
विभिन्न धर्मों, परम्परओं से सम्बन्धित कार्यो के अतिरिक्त यह भारतीय - इस्लामी अध्ययन और कलाओं खज़ाना भी है.
यहाँ पर हिंदी, संस्कृत, उर्दू, तमिल, तुर्की और पश्तों साहित्य जैसी दुर्लभ पुस्तकों का खज़ाना रज़ा लाइब्रेरी (पुस्तकालय) में उपलब्ध है. पवित्र कुरान का पहला हस्तलिपि अनुवाद भी यहाँ हुआ है.
ज़ियाउद्दीन बरनी की तारीख - ए - फ़िरोज़शाह
ज़ियाउद्दीन बरनी की सहीफ़ा - ए - नात - ए -मुहम्मदी
रामपुर रियासत :- रामपुर की स्थापना उत्तर प्रदेश में रोहिलओं के प्रमुख सरदार दाऊद खान के दत्तक पुत्र अली मुहम्मद खान ने की थी। रोहिल्लाजिन्होंने 18 वीं शताब्दी में भारत में प्रवेश किया, उस दौरान मुग़ल साम्राज्य का पतन हो रहा था, जिसके चलते इन्होने रोहिलखंड जिसे कठेर के नाम से जाना जाता था उस पर नियंत्रण कर लिया। 1737 में नवाब अली मुहम्मद खान ने सम्राट मुहम्मद शाह से कठेर का क्षेत्र प्राप्त कर लिया, 1746 में अवध के नवाब वज़ीर ने अपना सब कुछ खो दिया. अगले दो शताब्दियों में रामपुर के राजघराने, जो पहले एक युद्धरत कबीले थे इन्होने यहाँ पर अपने गहरी जड़े जमा ली और अंग्रजों की मेहरबानी से, देश में सबसे अमीर रियासतों में से एक का उदय हुआ.
1775 में नवाब फ़ैज़ुल्लाह खान ने रामपुर शहर बसाया. मूलरूप से यह राजा राम सिंह के नाम काथेर नामक चार गावों का एक समूह था. पहले नवाब ने इस शहर का नाम 'फैज़ाबाद' करने का प्रस्ताव रखा लेकिन और भी कई जगहों का नाम फैज़ाबाद था, इसलिए इसका नाम 'मुस्तफ़ाबाद' उर्फ़ 'रामपुर' कर दिया गया। नवाब फैज़ुल्लाह खान ने 20 वर्षो तक यहां शासन किया, उनकी मृत्यु के बाद उनके बेटे मुहम्मद अली खान ने पदभार संभाला, 24 दिनों के बाद रोहिल्ला नेताओं ने उसे मार डाला और मृतक के भाई गुलाम मुहम्मद खान को नवाब घोषित किया। ईस्ट इंडिया कम्पनी ने 3 महीने और 22 दिनों के शासनकाल के बाद गुलाम मुहम्मद खान को पराजित किया, और गवर्नर - जनरल ने दिवंगत मुहम्मद अली खान के पुत्र अहमद अली खान बनाया। जिसने 44 वर्षों शासन किया, उनका कोई पुत्र नहीं था इसलिए गुलाम मुहम्मद खान के पुत्र मुहम्मद सईद खान ने नए नवाब के रूप में पदभार संभाला, उन्होंने एक नियमित सेना का गठन किया, न्यायालयों की स्थापना की और किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधर के लिए कई कार्य किए. उनके बेटे मुहम्मद युसूफ अली खान ने उनकी मृत्यु के बाद पदभार संभाला। 1865 में युसूफ अली खान की मृत्यु के बाद उनके पुत्र कल्ब अली खान नए नवाब बने, नवाब कल्ब अली खान अरबी और फ़ारसी में साक्षर थे. उनके शसनकाल में राज्य ने शिक्षा के स्तर को ऊपर उठाने के लिए बहुत काम किया। वह लॉर्ड जॉन लॉरेंस के वायसराय के दौराम परिषद् के सदस्य भी थे.
उन्होंने रामपुर में 3,00000 रुपए में ज़मा मस्जिद का निर्माण कराया था. उन्हें प्रिंस ऑफ वेल्स द्वारा आगरा में नाइट की उपाधि भी दी गई थी, उन्होंने 22 वर्ष 7 महीने तक शासन किया उनकी मृत्यु के बाद उनके बेटे मुश्ताक अली खान ने पदभार संभाला, इन्होने अपने शासनकाल में कई नए भवन और नहरों का निर्माण करवाया. मुश्ताक अली के बाद नवाब हामिद अली 14 वर्ष की उम्र में 1889 में नए शासक बने. उनके शासनकाल में कई नए स्कूल खोले गए। 1905 में उन्होंने किले के अंदर शानदार दरबार हॉल का निर्माण किया, जिसमें अब रामपुर रज़ा लाइब्रेरी (पुस्तकालय) द्वारा रखी गई पाण्डुलिपियों ला बड़ा संग्रह है, उनके बेटे रज़ा अली खान 1930 में अंतिम शासक एवं नवाब थे, नवाब रज़ा अली के अधीन रामपुर 1949 में भारत में शामिल होने वाला पहला राज्य बना, जो उत्तर प्रदेश का एकमात्र मुस्लिम बहुल जिला बन गया, नवाब ने आधिकारिक शाही निवास रामपुर किला जिसे 1775 में बनाया गया था उसे भारत सरकार को सौंप दिया, साथ ही कई अन्य सम्पतियों जैसे कि शाही परिसर, जिसे अब जिला कलेक्ट्रेट और नगर मजिस्ट्रेट के कार्यालय के रूप में उपयोग किया जाता है. 1966 में जब रज़ा अली मृत्यु हुई, तो उनकी तीन पत्नियां, तीन बेटे और छः बेटियाँ थी उनके सबसे बड़े बेटे मुर्तज़ा अली खान ने उन्हें परम्परा के अनुसार राज्य के प्रमुख के रूप में उत्तराधिकारी बनाया, सरकार ने उन्हें उनके पिता की सभी निजी सम्पत्तियों में एकमात्र उत्तराधिकारी के रूप में मान्यता दी, और इस आशय का एक प्रमाण पत्र जारी किया। रामपुर में अमीर रज़ा पुस्तकालय चलते थे, जिसे कभी नवाब के आधिकारिक दरबार के रूप में जाना जाता था. रज़ा लाइब्रेरी (पुस्तकालय) में अरबी, उर्दू, फ़ारसी और तुर्की में लगभग 15,000 पांडुलिपियों के साथ-साथ सातवीं शताब्दी के कुरान का घर कहा जाता था, पुस्तकालय में इस्लामी सुलेख के 2,500 नमूने, 5000 लघु चित्र और 60,000 मुद्रित पुस्तकें है, इसके अलावा वाल्मीकि की रामायण का अत्यंत दुर्लभ फ़ारसी अनुवाद भी है, जिसके बारे में माना जाता है कि यह सम्राट औरंगज़ेब की व्यक्तिगत प्रति थी। 20 वीं सदी में उन्होंने चीनी और कपडा मिलों की स्थापना की राज्य में कई हिन्दू वरिष्ठ प्रशानिक पदों पर कार्यरत थे.
रामपुर राज्य का राज्य चिन्ह
रामपुर के नवाबों का शासनकाल
फ़ैज़ुल्लाह खान -- 15 सितम्बर 1748 से 24 जुलाई 1793
हाफ़िज़ रहमत खान (राज्य प्रतिशासक) --- 15 सितम्बर 1748 से 23 अप्रैल 1774
मुहम्मद अली खान बहादुर -- 24 जुलाई 1793 से 11 अगस्त 1793
गुलाम मुहम्मद खान -- 11 अगस्त 1793 से 24 अक्टूबर 1794
अहमद अली खान -- 24 अक्टूबर 1794 से 05 जुलाई 1840
नसरुल्लाह खान (राज्य प्रतिशासक) -- 24 अक्टूबर 1794 से 5 जुलाई 1811
मुहम्मद सैद खान बहादुर -- 5 जुलाई 1840 से 1 अप्रैल 1855
युसुफ अली खान बहादुर -- 1 अप्रैल 1855 से 21 अप्रैल 1865
क़ब्ल अली खान -- 21 अप्रैल 1865 से 23 मार्च 1887
मुहम्मद मुश्ताक अली खान -- 25 मार्च 1887 से 25 फरवरी 1889
हामिद अली खान -- 25 फ़रवरी 1889 से 20 जून 1930
नवाब फैज़ुल्लाह खान (रामपुर)
हाफिज रहमत खान के मकबरे को दर्शाता चित्र
इमामबाड़ा फोर्ट (रामपुर)
ख़ुसरूबाग (रामपुर)
नवाब क़ब्ल अली खान 1865 - 1887
मस्जिद मक़बरा जनाबे आलिया :- यह मस्जिद मक़बरा जनाबे आलिया के निकट स्थापित है। इसकी स्थापना नवाब हामिद अली खाँ के काल में चुने - गारे और लखौरी ईंट के प्रयोग से की गयी थी। यह एक छोटी सी सुन्दर मस्जिद है, जिसके तीन मेहराबी दर और इसके ऊपर तीन गुम्बद स्थापित है, जिसके ऊपर कलश एवं पीतल की लम्बी बुर्जी का प्रयोग किया गया हैं। इसके चारों कोनों पर एक-एक सुन्दर मीनारें स्थापित है मस्जिद के सामने के भाग में बड़ी सुन्दर बुर्जी और उसके साथ गुम्बद आकृति के पैरापेट का प्रयोग किया गया है। इस मस्जिद में पाँचो वक्त की नमाज़ होती है.
मक़बरा जनाबे आलिया परिसर, रामपुर
मस्जिद-ए-दारोगा महबूब जान :- इस मस्जिद स्थापना 1901 ई० दारोगा महबूब जान ने कराई थी.जिसकी स्थापना चुने-गारे और लाखौरी ईंटे के प्रयोग से की गई है। इस मस्जिद के सामने के भाग में एक विशाल बरामदे की स्थापना की गई है। जिसके ऊपर छज्जे निकाल कर उसके ऊपर बुर्जी स्वरुप का पैरापेट का प्रयोग किया गया है जिसके दोनों ओर विशाल मीनार स्थापित है। इसके मध्य भाग में विशाल गुम्बद स्थापित है. जिसके ऊपर कलश और कलश के ऊपर 16 बुर्जियों का प्रयोग किया है, जिस के मध्य भाग में सुंदरता हेतु पीपल की छतरी एवं उसके ऊपर पीतल की बुर्जी का प्रयोग किया गया है मस्जिद के चारों कोनों पर बुर्जी स्वरुप के मीनार स्थापित हैं। इस मस्जिद निर्माण स्वरुप अत्यन्त प्रभावी है। इसमें पाँचों वक्त की नमाज़ अदा की जाती है।
प्रसिद्ध ख़लीफ़ा :-
मुल्ला मुहम्मद या मियाँ उर्फ़ मुहम्मद शाह
शाह कमालुद्दीन
मौलवी मोहम्मद नईम मियाँ उर्फ़ नईम शाह
शाह हबीब
शाह अब्दुल वहाब
मियाँ गुलाम हुसैन शाह
इमामुद्दीन ख़ाँ
शाह अबूसईद
''ख़लीफ़ा का अर्थ -- पैगंबर का उत्तराधिकारी या उत्तराधिकारी''
''बुर्जी का अर्थ -- छोटा गुम्बद''
''पैरापेट का अर्थ -- रेलिंग, बालकनी या एक छत''
दिल्ली सल्तनत काल 1206 - 1526 ई० के मध्य इस क्षेत्र की स्थिति :- सन्न 1192 ई० में गौर के सुल्तान मुहम्मद ग़ौरी ने दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान को परास्त कर हिंदुस्तान में तुर्की शासन की नीव रखी। उसके सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने शीघ्र ही इस क्षेत्र के बदायूँ पर आक्रमण करके यहाँ भी युर्की साम्राज्य का अधिकार स्थापित किया। उस समय इस क्षेत्र में राजपूतों का प्रभाव था।
लगभग तीन सौ वर्षों तक यहाँ विभिन्न वंशों के सुल्तानों का अधिकार रहा। कठेरिया राजपूतों के वर्चस्व के कारण ही यह क्षेत्र कठेर कहलाता था। यहाँ इन राजपूतों ने अपने विभिन्न क्षेत्रों में गढ़ ( दुर्ग ) स्थापित कर लिए। उस समय रामपुर का क्षेत्र के अधिकार में था। पन्द्रहवीं शताब्दी ई० के प्रारम्भ में राव (राजा) हरसिंह देव ने इस इलाके पर अपना अधिकार बढ़ा लिया था। उसके बाद उनके बेटा यहाँ का राव बना उनके बेटे राम सिंह के बारे में जनश्रुति है कि उसने यहाँ रामपुरा की स्थापना की। ऐसा भी कहा जाता है कि जहाँ वर्तमान राजद्वारा मोहल्ला है वह पुराना रामपुर था।
संदर्भ :-
मैं रामपुर हूँ रामपुर का इतिहास एवं संस्कृत, संजय प्रकाशन दिल्ली 2020, डॉ० मोहम्मद हिफज़ुर्रहमान, पृष्ठ संख्या 02
मैं रामपुर हूँ रामपुर का इतिहास एवं संस्कृत, संजय प्रकाशन दिल्ली 2020, डॉ० मोहम्मद हिफज़ुर्रहमान, पृष्ठ संख्या 28
मैं रामपुर हूँ रामपुर का इतिहास एवं संस्कृत, संजय प्रकाशन दिल्ली 2020, डॉ० मोहम्मद हिफज़ुर्रहमान, पृष्ठ संख्या 29
मैं रामपुर हूँ रामपुर का इतिहास एवं संस्कृत, संजय प्रकाशन दिल्ली 2020, डॉ० मोहम्मद हिफज़ुर्रहमान, पृष्ठ संख्या 69
https://ignca.gov.in/coilnet/ruh0047.htm (स्थापत्य निर्माण) दिनाँक 11/01 /2024 समय 10:51AM
https://rampur.nic.in/hi (रामपुर जिले के बारे में उत्तर प्रदेश) दिनाँक 21/11/2023 समय 02:41AM
https://bharatdiscovery.org/india (रज़ा पुस्तकालय रामपुर उत्तर प्रदेश) दिनाँक 21/11 /2023 समय 02:57AM
https://prarang.in/rampur/razalibrary.php (रज़ा लाइब्रेरी) दिनाँक 22/11/2023 समय 01:53PM
https://indianculture.gov.in/hi/MoCorganization/raamapaura-rajaa-laaibaraerai (भारतीय संस्कृति) दिनांक 25/12/2023 समय 03:46PM
https://indiaculture.gov.in/rampur-raza-library-rampur दिनाँक 26/12/2023 समय 11:34PM
https://www.rampuronline.in/city-guide/history-of-rampur (रामपुर का इतिहास) दिनाँक 10/01/2024 समय 05:12PM
No comments:
Post a Comment