जंगेआज़ादी और बिहार
रावेंद्र प्रताप सिंह
भवन्स मेहता महाविद्यालय भरवारी कौशाम्बी
जब बिहार मे 1857 की क्रांति की बात होती है तो 'बाबू कुँवर सिंह' का नाम लिया जाता है,''उन्हे याद किया जाता है ये सच है बिहार मे क्रांति की नुमाइंदगी कुँवर सिंह ने किया पर क्रांति की शुरुवात नहीं की. बिहार मे 1857 के विद्रोह की शुरुवात सबसे पहले 12 जून 1857 को देवघर जिले के रोहिणी नामक स्थान पर होती है. अमानत अली, सलामत अली और शेख हारो द्वारा अंग्रेज अधिकारी मेजर नार्मन तथा कुछ अंग्रेज सिपाहियों की हत्या कर दी जाती है और इस जुर्म के लिए उन्हे 16 जून 1857 को आम के पेड़ पर लटकाकर फांसी दे दी जाती है और इस तरह बिहार मे 1857 की क्रांति की शुरुवात होती हैं.
23 जून 1857 को तिरहुत के वारिस अली को गिरफ़्तार कर लिया गया जिसके बाद समूचे तिरहुत इलाके में क्रांति की लहर फैल गई। 3 जुलाई 1857 को दो सौ से अधिक हथियारबंद क्रांतिकारी पटना के एक पुस्तक विक्रेता पीर अली के नेतृत्व में देश को गुलामी की जंजीर से आज़ाद करवाने के लिए पटना में निकल पड़े ( इन क्रांतिकारियों ) को हथियार ( मौलवी मेहंदी ) ने उपलब्ध करवाया था.
विद्रोहियों ने पटना शहर के चौक पर अधिकार कर लिया. विद्रोह को दबाने के लिए एजेंट मेजर लॉयर को भेजा गया लेकिन विद्रोहियों ने उनकी और उनके सैनिकों की हत्या कर दी. उस समय पटना के कमिश्नर टेलर थे जिन्होंने विद्रोह को दबाने के लिए अनेक कठोर कदम उठाया तथा पटना वासियों पर अनेक प्रतिबन्ध लगा दिया। टेलर ने इससे पूर्व 19 जून 1857 को ही पटना के तीन प्रतिष्ठित मोहम्मद हुसैन, अहमदुल्ला और वायजुल हक़ को गिरफ्तार किया गया. 6 जुलाई 1857 को तिरहुत के वारिस अली को बागवत के जुर्म में फांसी पर लटका दिया। 7 जुलाई 1857 को पीर अली के साथ घसीटा खलीफा, गुलाम अब्बास, नंदू लाल उर्फ़ सिपाही जुम्मन, मदुवा, काज़िल खान, रमजानी, पीर बख्श, वाहिद अली, गुलाम अली, महमूद अकबर और असरार अली को पटना के बीच सड़क पर फांसी पर लटका दिया। 13 जुलाई 1857 को पैगम्बर बख़्श तथा कल्लू खान को बगावत के ज़ुर्म में फांसी दे दी गई।
पीर अली खान :- पीर अली लखनऊ के मूल निवासी थे और कुछ समय से पटना में पुस्तक बेचनें का कार्य कर रहे थे. बेची जानेवाली पुस्तकों को पढ़ते-पढ़ते उन्हें देश की स्वतंत्रता की चाह हो गई. उनमें स्वधर्म-प्रतिष्ठापन की महत्वकांछा जागी। दिल्ली और लखनऊ शहर की क्रांति समितियों से आवाजाही बढ़ाकर वह अंग्रेज़ों के राज्य के संबंध में अपने हृदय में चुभते लज्जा के काटें दूसरों के हृदय में भी रोपने लगें. वह व्यवसाय से पुस्तक विक्रेता थे, पटना की क्रांति के लिए अंग्रेज़ों के विरूद्ध शपथ दिलाई। पटना में अंग्रेज अधिकारीयों द्वारा अत्याचार प्रारम्भ करते ही पीर अली के तेज़ स्वाभाव के लिए चुप रहना कठिन हो गया. वह व्यवहार से बड़े कर्मठ, स्वाभिमानी और शूर थे, उनसे स्वदेश की दुर्दशा देखी नहीं गई। पीर अली के बयान के अनुसार 'अपक्वा स्थिति में ही विद्रोह किया'. पीर अली की गिरफ्तारी के बाद उन्हें फांसी का दंड दिया गया. फांसी देने के लिए उन्हें जब ले जाया जा रहा था तब उनके हांथो में भारी-भारी हथकड़ियों थी, शरीर पर हुए घावों से जिसके वस्त्र रक्त से सने है और मरण की भयानकता को अपनी मुद्रा के वीर हास्य से जो धिक्कार रहा है, ऐसा पीर अली फांसी के फंदे सामने खड़ा है।
कमिश्नर टेलर्स ने स्वयं कहा है कि ,'' पीर अली स्वयं एक साहसी और दृढ़ संकल्पवाला व्यक्ति था यद्यपि उसके चेहरे से ही क्रूरता और कठोरता झलकती थी, किन्तु इसपर भी वह शांत और संयमी था। उसकी बोलचाल और व्यवहार में शालीनता थी. इस प्रकार के लोग अपनी अजेय निष्ठा के कारण खतरनाक शत्रु सिद्ध होते हैं। किन्तु अपनी कठोर आन के कारण वे किसी सीमा तक प्रशंसा के पात्र होते हैं.''
https://archives.bihar.gov.in/pdfjs/web/PDFviewer1.html?filename=19
पीर अली के मुक़दमे के कागज़ात
इन्क़लाबियों की इतनी बड़ी क़ुर्बानियों की ख़बर सुन कर दानापुर की फौज़ी टुकड़ी ने 25 जुलाई को बागवत कर दिया कुंवर सिंह की फ़ौज़ से जाकर मिल गए. 25 जुलाई 1857 को आरा शहर पर कब्ज़ा करने के बाद बाबू कुँवर सिंह ने शेख गुलाम को यँहा का मजिस्ट्रेट बनाया. दो थानों का निर्माण कराया, जिसके कोतवाल तुराब अली और ख़ादिम अली को नियुक्त किया.
25 सितम्बर 1857 को पटना के कमिश्नर E.A.Samuels (इ.ए.सैमुएल्स) कोलकाता में मौजूद अपने बड़े आफसरको खत लिखता हैं,'' बाबू कुँवर सिंह खुद को मुल्क का बादशाह समझते हैं, वह अंग्रेज़ों को कमज़ोर करने के लिए उन्हीं के तर्ज़ पर अपना प्रशासन खड़ा कर अमली (कामकाजी) के तहत इसमें अपने लोगों कोओहदा (पद, स्थान) देना शुरू कर रहें है.
आगे लिखते हैं,''बाबू कुँवर सिंह द्वारा आरा में की जा रही उनकी हरकत बता रही है। के उनकी हुकूमत क़ायम हो चुकी है. और वह उसी तर्ज़ एक ऐसी सरकार वजूद में लाना चाहते है जिसे हरा कर, कुचल कर वह मुकाम पर पहुंचे है. लेकिन यह कब्ज़ा लम्बे दिनों तक नहीं रह सका। मेजर आयर एक बड़ी फ़ौज़ लेकर 3 अगस्त 1857 को आरा पर चढ़ आया. आरा के किले पर अंग्रेज़ों का फिर से कब्ज़ा हो गया।
8 अगस्त 1857 को पीर अली खान के साथी औसाफ़ हुसैन और छेदी ग्वाला को भी बग़ावत के जुर्म में फाँसी पर लटका दिया जता है. बाकी लोगों को काला पानी की सज़ा होती है.
सर विलियम हंटर :- सन्न 1857 की क्रांति से भी पांच वर्ष पूर्व ही पटना में एक महँ विध्वंसक संगठन विधमान था. जो सीमा प्रान्त के कट्टर शिविर को धन और जान दोनों की ही उपलब्धि करा रहा था। यह संगठन बहाबियों का था इस संगठन के एक प्रमुख वहाबी (कुरान को मानने वाला एक मुस्लिम संप्रदाय ) नेता को बंदी भी बनाया गया था. तदुपरांत इसपर राजद्रोह का अभियोग (दोषारोपड़, मुकदमा) चलाया गया था और इसे राजद्रोह के अपराध में आजीवन कारावास का दंड देकर कालापानी भेज दिया गया था.
सिख सेना के पटना शहर में आते ही अंग्रेज़ अधिकारी टेलर ने विद्रोह की चिंगारी को कुचल डालने को कमर कसी। तिरहुत जिले के पुलिस जमादार वारिस अली के सम्बन्ध में वँहा के अधिकारीयों को आशंका होने से उसके घर पर छापा मार उसे पकड़ लिया गया. उसके घर मिले क्रांति के पत्राचार के कारण उसे जल्द ही मृत्युदंड देकर जब फाँसी स्थल पर लाया गया। तब वहाँ एकाएक लोगों की ओर देखकर चिल्लाया,'' स्वराज्य का कोई सच्चा भक्त हो तो मुझे मुख्त करों'' उसका यह निवेदन स्वराज्य-भक्त के कान में जाने से पूर्व ही उसका निर्जीव देह फाँसी पर लटक रही थी।
जीवधर सिंह :- 1857 की क्रांति में गया, अरवल, नवादा और औरंगाबाद में अंग्रेज़ों से लोहा लेने वाले लोगों में जीवधर सिंह का नाम बहुत मत्वपूर्ण है. कुँवर सिंह की सलाह से उन्होंने विद्रोहियों की फौज गठित कर अंग्रेजी सत्ता की निशानियों पर सफल हमला किया वास्तव में उन्होंने देसी सरकार कायम कर ली थी। जीवधर सिंह ने ग्रैंड ट्रंक रोड सहित गया जिले उत्तरी भाग पर कब्ज़ा कर लिया। उन्होंने मुनादी कर दी थी कि अंग्रेज़ों का राज ख़त्म हो गया है. उन्होंने कचहरियों और भवनों को ध्वस्त कर दिया था। जब अंग्रेजी फौज का शिकंजा कसने लगा तब जीवधर सिंह अपने 900 सहयोगियों के साथ जंगलों में छिपकर छापामार लड़ाई लड़ते रहे. इन पर निगरानी के लिए भागलपुर, नवादा, औरंगाबाद, अरवल, दानापुर में यूरोपियन पुलिस तैनात की गयी थी। 7 अप्रैल 1858 को गया के मजिस्ट्रेट ने जीवधर की संपत्ति जप्त करने का आदेश दिया था. 2 अक्टूबर को उनकी संपत्ति नीलम कर दी गई। बिहार सरकार की ओर से उन पर एक हजार रुपये का इनाम की घोषणा की गई थी। उनके भाई उनके भाई हेतन सिंह का नाम अरवल और गया थाना ने उत्पाती के तौर पर दर्ज़ था. गया के बिशुन सिंह ने अप्रैल 1859 में जीवधर को पकड़वा दिया था एवं अंग्रेज़ों से इनाम पाया था। बाद में जीवधर सिंह को फाँसी पर चढ़ा दिया गया था. 10 मई 2022 को जीवधर सिंह और हेतन सिंह की बहादुरी को सम्मान देने के लिए खभौनी गांव में शहीद पार्क स्मारक का शिलान्यास किया गया था।
1857 की क्रांति और भारतीय इतिहासकार
के.एम पणिक्कर :- यह सच है कि जिन लोगों का राज्य छिन गया था, जिनकी पेंशन बंद कर दी गई थी वे ही इस विद्रोह के नेता थे, किन्तु क्रांति का उद्देश्य अंग्रेज़ों को भारत से बाहर निकालकर देख में एक राष्ट्रीय राज्य की स्थापना करना था। इस दृष्टिकोण से यह ग़दर न होकर राष्ट्रीय क्रांति थी.
थोम्पसन एवं गैरेट :- यह विद्रोह एक मध्यकालीन गृह युद्ध था.
मौलाना आज़ाद :- मुझे इस बात में गंभीर संदेह है कि योजना बानी और आंदोलन चला वास्तविकता यह है कि विद्रोह बहादुरशाह के लिए उतना ही आश्चर्यजनक था, जितना अंग्रेज़ों के लिए.
जवाहर लाल नेहरू :- यह पुरानी व्यवस्था के ऊपर नयी व्यवस्था की जीत थी.
आर.सी.मजूमदार :- कुछ मिलाकर इस निष्कर्ष से हटना कठिन है कि 1857 में तथाकथित प्रथम स्वतंत्रता संग्राम न तो प्रथम न ही राष्ट्रीय और न ही स्वतंत्रता संग्राम था.
मग़फ़ूर अहमद अज़ाज़ी :- मगफ़ूर अहमत अज़ाज़ी का जन्म बिहार में मुजफ्फरपुर जिले में। वह एक रानीतिक कार्यकर्ता थे, जिन्होंने गाँधी जी का अनुसरण करने के लिए पढाई छोड़ दी थी. वह वर्ष 1921 में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी सत्र में भाग लिया और हसरत मोहनी द्वारा मांगे गए पूर्ण स्वराज प्रस्ताव का समर्थन किया। इस प्रस्ताव महात्मा गाँधी ने विरोध किया और असफल रहे. मग़फ़ूर अहमद अज़ाज़ी की मुलाकात साबरमती आश्रम में गाँधी जी से हुई थी. वह केंद्रीय खिलाफत समिति के प्रतिनिधि थे, जिन्होंने बाद में कलकत्ता खिलाफत समिति का कार्यभार संभाला। उन्हें सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में एक विरोध मार्च में भाग लेने के दौरान गिरफ्तार किया गया था. वर्ष 1942 में उनके घर पर तलाशी अभियान चलाया गया इसमें उन्हें गुप्त रूप से काम करने के लिए प्रेरित किया। इन्होने मुहम्मद अली जिन्ना द्वारा शुरू किये गये द्वि-राष्ट्र सिद्धांत का भी विरोध किया था.
बाबू कुँवर सिंह :- बाबू कँवर सिंह का जन्म 1777 ई० बिहार में हुआ था. उन्हें बचपन से ही शिक्षा से अधिक शौर्य-युक्त कार्यों में रूचि थी.बिहार के शाहाबाद में उनकी एक छोटी रियासत थी उन पर जब क़र्ज़ बढ़ गया तो अंग्रेजों ने रियासत का प्रबंध अपने हांथों में ले लिए. उनका एक एजेंट लगान वसूल करता, सरकारी रकम चुकता और रकम से किस्तों में रियासत का क़र्ज़ उतारा जाता. कुंवर सिंह के भारतीय नेता थे जो जगदीशपुर के परमार राजपूतों के उज्जैनिया वंश के एक परिवार से थे, जो वर्तमान में भोजपुर जिले, बिहार (भारत का एक हिस्सा है ) कुंवर सिंह ने 1857 की क्रांति में बिहार से नेतृत्व किया और आरा में आंदोलन की कमान संभाली और जगदीशपुर में विदेशी सेना से मोर्चा लेकर सहसराम और रोहतास में विद्रोह की अग्नि भड़काई थी. 500 सैनिकों के साथ रीवा पहुचें और वंहा के जमींदारों को अंग्रेज़ों से युद्ध के लिए तैयार किया। उनकी छापामार युद्ध शैली से अंग्रेजी सेना को पीछे हटना पड़ा. 23 अप्रैल 1858 अंग्रेजी सेना को पराजित करके जगदीशपुर पहुंचे। लोगों ने उनको सिंहासन पर बैठाया और राजा घोषित किया परन्तु 1857 की क्रांति के नायक 26 अप्रैल 1858 को अपने जीवन को विराम दे दिया। भारत में स्वतंत्रता आंदोलन में उनके योगदान का सम्मान करने के लिए, भारत गणराज्य ने 23 अप्रैल 1966 को एक स्मारक, डाक टिकट जारी किया था. भर सरकार ने 1992 में वीर कुँवर सिंह विश्वविद्यालय की स्थापना की।
सन्दर्भ:-
1857 का स्वातंत्र्य समर विनायक दामोदर सावरकर, प्रभात प्रकाशन वर्ष 2007 पृष्ट संख्या 261
1857 का स्वातंत्र्य समर विनायक दामोदर सावरकर, प्रभात प्रकाशन वर्ष 2007 पृष्ट संख्या 263
1857 का स्वातंत्र्य समर विनायक दामोदर सावरकर, प्रभात प्रकाशन वर्ष 2007 पृष्ट संख्या 264
1857 की क्रांति के नायक बाबू कुँवर सिंह और उनके मुस्लिम साथियों की वीरगाथा। Heritage Times https://www.heritagetimes.in/babu-kunwar-singh-muslims
PEER ALI KHAN | INDIAN CULTURE
https://archives.bihar.gov.in/pdfjs/web/PDFviewer1.html?filename=19
https://archives.bihar.gov.in/pdfjs/web/PDFviewer1.html?filename=23
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