Thursday, February 29, 2024

जंगेआज़ादी और बिहार

जंगेआज़ादी और बिहार

 रावेंद्र प्रताप सिंह 

 भवन्स मेहता महाविद्यालय भरवारी कौशाम्बी

जब बिहार मे 1857 की क्रांति की बात होती है तो 'बाबू कुँवर सिंह' का नाम लिया जाता है,''उन्हे याद किया जाता है ये सच है बिहार मे क्रांति की नुमाइंदगी कुँवर सिंह ने किया पर क्रांति की शुरुवात नहीं की. बिहार मे 1857 के विद्रोह की शुरुवात सबसे पहले 12 जून 1857 को देवघर जिले के रोहिणी नामक स्थान पर होती है. अमानत अली, सलामत अली और शेख हारो द्वारा अंग्रेज अधिकारी मेजर नार्मन तथा कुछ अंग्रेज सिपाहियों की हत्या कर दी जाती है और इस जुर्म के लिए उन्हे 16 जून 1857 को आम के पेड़ पर लटकाकर फांसी दे दी जाती है और इस तरह बिहार मे 1857 की क्रांति की शुरुवात होती हैं. 

 23 जून 1857 को तिरहुत के वारिस अली को गिरफ़्तार कर लिया गया जिसके बाद समूचे तिरहुत इलाके में क्रांति की लहर फैल गई। 3 जुलाई 1857 को दो सौ से अधिक हथियारबंद क्रांतिकारी पटना के एक पुस्तक विक्रेता पीर अली के नेतृत्व में देश को गुलामी की जंजीर से आज़ाद करवाने के लिए पटना में निकल पड़े ( इन क्रांतिकारियों ) को हथियार ( मौलवी मेहंदी ) ने उपलब्ध करवाया था. 

विद्रोहियों ने पटना शहर के चौक पर अधिकार कर लिया. विद्रोह को दबाने के लिए एजेंट मेजर लॉयर को भेजा गया लेकिन विद्रोहियों ने उनकी और उनके सैनिकों की हत्या कर दी.  उस समय पटना के कमिश्नर टेलर थे जिन्होंने विद्रोह को दबाने के लिए अनेक कठोर कदम उठाया तथा पटना वासियों पर अनेक प्रतिबन्ध लगा दिया। टेलर ने इससे पूर्व 19 जून 1857 को ही पटना के तीन प्रतिष्ठित मोहम्मद हुसैन, अहमदुल्ला और वायजुल हक़ को गिरफ्तार किया गया. 6 जुलाई 1857 को तिरहुत के वारिस अली को बागवत के जुर्म में फांसी पर लटका दिया। 7 जुलाई 1857 को पीर अली के साथ घसीटा खलीफा, गुलाम अब्बास, नंदू लाल उर्फ़ सिपाही जुम्मन, मदुवा, काज़िल खान, रमजानी, पीर बख्श, वाहिद अली, गुलाम अली, महमूद अकबर और असरार अली को पटना के बीच सड़क पर फांसी पर लटका दिया। 13 जुलाई 1857 को पैगम्बर बख़्श तथा कल्लू खान को बगावत के ज़ुर्म में फांसी दे दी गई। 

पीर अली खान :- पीर अली लखनऊ के मूल निवासी थे और कुछ समय से पटना में पुस्तक बेचनें का कार्य कर रहे थे. बेची जानेवाली पुस्तकों को पढ़ते-पढ़ते उन्हें देश की स्वतंत्रता की चाह हो गई. उनमें स्वधर्म-प्रतिष्ठापन की महत्वकांछा जागी। दिल्ली और लखनऊ शहर की क्रांति समितियों से आवाजाही बढ़ाकर वह अंग्रेज़ों के राज्य के संबंध में अपने हृदय में चुभते लज्जा के काटें दूसरों के हृदय में भी रोपने लगें. वह व्यवसाय से पुस्तक विक्रेता थे, पटना की क्रांति के लिए अंग्रेज़ों के विरूद्ध शपथ दिलाई।  पटना में अंग्रेज अधिकारीयों द्वारा अत्याचार प्रारम्भ करते ही पीर अली के तेज़ स्वाभाव के लिए चुप रहना कठिन हो गया. वह व्यवहार से बड़े कर्मठ, स्वाभिमानी और शूर थे, उनसे स्वदेश की दुर्दशा देखी नहीं गई।  पीर अली के बयान के अनुसार 'अपक्वा स्थिति में ही विद्रोह किया'. पीर अली की गिरफ्तारी के बाद उन्हें फांसी का दंड दिया गया. फांसी देने के लिए उन्हें जब ले जाया जा रहा था तब उनके हांथो में भारी-भारी हथकड़ियों थी, शरीर पर हुए घावों से जिसके वस्त्र रक्त से सने है और मरण की भयानकता को अपनी मुद्रा के वीर हास्य से जो धिक्कार रहा है, ऐसा पीर अली फांसी के फंदे सामने खड़ा है। 

 कमिश्नर टेलर्स ने स्वयं कहा है कि ,'' पीर अली स्वयं एक साहसी और दृढ़ संकल्पवाला व्यक्ति था यद्यपि उसके चेहरे से ही क्रूरता और कठोरता झलकती थी, किन्तु इसपर भी वह शांत और संयमी था। उसकी बोलचाल और व्यवहार में शालीनता थी. इस प्रकार के लोग अपनी अजेय निष्ठा के कारण खतरनाक शत्रु सिद्ध होते हैं। किन्तु अपनी कठोर आन के कारण वे किसी सीमा तक प्रशंसा के पात्र होते हैं.''

https://archives.bihar.gov.in/pdfjs/web/PDFviewer1.html?filename=19 

पीर अली के मुक़दमे के कागज़ात   

इन्क़लाबियों की इतनी बड़ी क़ुर्बानियों की ख़बर सुन कर दानापुर की फौज़ी टुकड़ी ने 25 जुलाई को बागवत कर दिया  कुंवर सिंह की फ़ौज़ से जाकर मिल गए. 25 जुलाई 1857 को आरा शहर पर कब्ज़ा करने के बाद बाबू कुँवर सिंह ने शेख गुलाम को यँहा का मजिस्ट्रेट बनाया. दो थानों का निर्माण कराया, जिसके कोतवाल तुराब अली और ख़ादिम अली को नियुक्त किया.  

25 सितम्बर 1857 को पटना के कमिश्नर E.A.Samuels (इ.ए.सैमुएल्स) कोलकाता में मौजूद अपने बड़े आफसरको खत लिखता हैं,'' बाबू कुँवर सिंह खुद को मुल्क का बादशाह समझते हैं, वह अंग्रेज़ों को कमज़ोर करने के लिए उन्हीं के तर्ज़ पर अपना प्रशासन खड़ा कर अमली (कामकाजी) के तहत इसमें अपने लोगों कोओहदा (पद, स्थान) देना शुरू कर रहें है.

आगे लिखते हैं,''बाबू कुँवर सिंह द्वारा आरा में की जा रही उनकी हरकत बता रही है।  के उनकी हुकूमत क़ायम हो चुकी है. और वह उसी तर्ज़ एक ऐसी सरकार वजूद में लाना चाहते है जिसे हरा कर, कुचल कर वह मुकाम पर पहुंचे है. लेकिन यह कब्ज़ा लम्बे दिनों तक नहीं रह सका। मेजर आयर एक बड़ी फ़ौज़ लेकर 3 अगस्त 1857 को आरा पर चढ़ आया. आरा के किले पर अंग्रेज़ों का फिर से कब्ज़ा हो गया। 

8 अगस्त 1857 को पीर अली खान के साथी औसाफ़ हुसैन और छेदी ग्वाला को भी बग़ावत के जुर्म में फाँसी पर लटका दिया जता है. बाकी लोगों को काला पानी की सज़ा होती है.

सर विलियम हंटर :- सन्न 1857 की क्रांति से भी पांच वर्ष पूर्व ही पटना में एक महँ विध्वंसक संगठन विधमान था. जो सीमा प्रान्त के कट्टर शिविर को धन और जान दोनों की ही उपलब्धि करा रहा था। यह संगठन बहाबियों का था इस संगठन के एक प्रमुख वहाबी (कुरान को मानने वाला एक मुस्लिम संप्रदाय ) नेता को बंदी भी बनाया गया था. तदुपरांत इसपर राजद्रोह का अभियोग (दोषारोपड़, मुकदमा) चलाया गया था और इसे राजद्रोह के अपराध में आजीवन कारावास का दंड देकर कालापानी भेज दिया गया था.

सिख सेना के पटना शहर में आते ही अंग्रेज़ अधिकारी टेलर ने विद्रोह की चिंगारी को कुचल डालने को कमर कसी।  तिरहुत जिले के पुलिस जमादार वारिस अली के सम्बन्ध में वँहा के अधिकारीयों को आशंका होने से उसके घर पर छापा मार उसे पकड़ लिया गया. उसके घर मिले क्रांति के पत्राचार के कारण उसे जल्द ही मृत्युदंड देकर जब फाँसी स्थल पर लाया गया। तब वहाँ एकाएक लोगों की ओर देखकर चिल्लाया,'' स्वराज्य का कोई सच्चा भक्त हो तो मुझे मुख्त करों'' उसका यह निवेदन स्वराज्य-भक्त के कान में जाने से पूर्व ही उसका निर्जीव देह फाँसी पर लटक रही थी। 

जीवधर सिंह :- 1857 की क्रांति में गया, अरवल, नवादा और औरंगाबाद में अंग्रेज़ों से लोहा लेने वाले लोगों में जीवधर सिंह का नाम बहुत मत्वपूर्ण है. कुँवर सिंह की सलाह से उन्होंने विद्रोहियों की फौज गठित कर अंग्रेजी सत्ता की निशानियों पर सफल हमला किया वास्तव में उन्होंने देसी सरकार कायम कर ली थी। जीवधर सिंह ने ग्रैंड ट्रंक रोड सहित गया जिले उत्तरी भाग पर कब्ज़ा कर लिया। उन्होंने मुनादी कर दी थी कि अंग्रेज़ों का राज ख़त्म हो गया है. उन्होंने कचहरियों और भवनों को ध्वस्त कर दिया था। जब अंग्रेजी फौज का शिकंजा कसने लगा तब जीवधर सिंह अपने 900 सहयोगियों के साथ जंगलों में छिपकर छापामार लड़ाई लड़ते रहे. इन पर निगरानी के लिए भागलपुर, नवादा, औरंगाबाद, अरवल, दानापुर में यूरोपियन पुलिस तैनात की गयी थी। 7 अप्रैल 1858 को गया के मजिस्ट्रेट ने जीवधर की संपत्ति जप्त करने का आदेश दिया था. 2 अक्टूबर को उनकी संपत्ति नीलम कर दी गई। बिहार सरकार की ओर से उन पर एक हजार रुपये का इनाम की घोषणा की गई थी। उनके भाई उनके भाई हेतन सिंह का नाम अरवल और गया थाना ने उत्पाती के तौर पर दर्ज़ था. गया के बिशुन सिंह ने अप्रैल 1859 में जीवधर को पकड़वा दिया था एवं अंग्रेज़ों से इनाम पाया था। बाद में जीवधर सिंह को फाँसी पर चढ़ा दिया गया था. 10 मई 2022 को जीवधर सिंह और हेतन सिंह की बहादुरी को सम्मान देने के लिए खभौनी गांव में शहीद पार्क स्मारक का शिलान्यास किया गया था। 

1857 की क्रांति और भारतीय इतिहासकार

  1. के.एम पणिक्कर :- यह सच है कि जिन लोगों का राज्य छिन गया था, जिनकी पेंशन बंद कर दी गई थी वे ही इस विद्रोह के नेता थे, किन्तु क्रांति का उद्देश्य अंग्रेज़ों को भारत से बाहर निकालकर देख में एक राष्ट्रीय राज्य की स्थापना करना था। इस दृष्टिकोण से यह ग़दर न होकर राष्ट्रीय क्रांति थी.

  2. थोम्पसन एवं गैरेट :- यह विद्रोह एक मध्यकालीन गृह युद्ध था.

  3. मौलाना आज़ाद :- मुझे इस बात में गंभीर संदेह है कि योजना बानी और आंदोलन चला वास्तविकता यह है कि विद्रोह बहादुरशाह के लिए उतना ही आश्चर्यजनक था, जितना अंग्रेज़ों के लिए.

  4. जवाहर लाल नेहरू :- यह पुरानी व्यवस्था के ऊपर नयी व्यवस्था की जीत थी.

  5. आर.सी.मजूमदार :- कुछ मिलाकर इस निष्कर्ष से हटना कठिन है कि 1857 में तथाकथित प्रथम स्वतंत्रता संग्राम न तो प्रथम न ही राष्ट्रीय और न ही स्वतंत्रता संग्राम था.

     मग़फ़ूर अहमद अज़ाज़ी :- मगफ़ूर अहमत अज़ाज़ी का जन्म बिहार में मुजफ्फरपुर जिले में। वह एक रानीतिक कार्यकर्ता थे, जिन्होंने गाँधी जी का अनुसरण करने के लिए पढाई छोड़ दी थी. वह वर्ष 1921 में आयोजित अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी सत्र में भाग लिया और हसरत मोहनी द्वारा मांगे गए पूर्ण स्वराज प्रस्ताव का समर्थन किया। इस प्रस्ताव महात्मा गाँधी ने विरोध किया और असफल रहे. मग़फ़ूर अहमद अज़ाज़ी की मुलाकात साबरमती आश्रम में गाँधी जी से हुई थी. वह केंद्रीय खिलाफत समिति के प्रतिनिधि थे, जिन्होंने बाद में कलकत्ता खिलाफत समिति का कार्यभार संभाला। उन्हें सुभाष चंद्र बोस के नेतृत्व में एक विरोध मार्च में भाग लेने के दौरान गिरफ्तार किया गया था. वर्ष 1942 में उनके घर पर तलाशी अभियान चलाया गया इसमें उन्हें गुप्त रूप से काम करने के लिए प्रेरित किया। इन्होने मुहम्मद अली जिन्ना द्वारा शुरू किये गये द्वि-राष्ट्र सिद्धांत का भी विरोध किया था.

     बाबू कुँवर सिंह :- बाबू कँवर सिंह का जन्म 1777 ई० बिहार में हुआ था. उन्हें बचपन से ही शिक्षा से अधिक शौर्य-युक्त कार्यों में रूचि थी.बिहार के शाहाबाद में उनकी एक छोटी रियासत थी उन पर जब क़र्ज़ बढ़ गया तो अंग्रेजों ने रियासत का प्रबंध अपने हांथों में ले लिए. उनका एक एजेंट लगान वसूल करता, सरकारी रकम चुकता और रकम से किस्तों में रियासत का क़र्ज़ उतारा जाता. कुंवर सिंह के भारतीय नेता थे जो जगदीशपुर के परमार राजपूतों के उज्जैनिया वंश के एक परिवार से थे, जो वर्तमान में भोजपुर जिले, बिहार (भारत का एक हिस्सा है ) कुंवर सिंह ने 1857 की क्रांति में बिहार से नेतृत्व किया और आरा में आंदोलन की कमान संभाली और जगदीशपुर में विदेशी सेना से मोर्चा लेकर सहसराम और रोहतास में विद्रोह की अग्नि भड़काई थी. 500 सैनिकों के साथ रीवा पहुचें और वंहा के जमींदारों को अंग्रेज़ों से युद्ध के लिए तैयार किया। उनकी छापामार युद्ध शैली से अंग्रेजी सेना को पीछे हटना पड़ा. 23 अप्रैल 1858  अंग्रेजी सेना को पराजित करके जगदीशपुर पहुंचे। लोगों ने उनको सिंहासन पर बैठाया और राजा घोषित किया परन्तु 1857 की क्रांति के नायक 26 अप्रैल 1858 को अपने जीवन को विराम दे दिया।  भारत में स्वतंत्रता आंदोलन में उनके योगदान का सम्मान करने के लिए, भारत गणराज्य ने 23 अप्रैल 1966 को एक स्मारक, डाक टिकट जारी किया था. भर सरकार ने 1992 में वीर कुँवर सिंह विश्वविद्यालय की स्थापना की। 

    सन्दर्भ:-

    1. 1857 का स्वातंत्र्य समर विनायक दामोदर सावरकर, प्रभात प्रकाशन वर्ष 2007 पृष्ट संख्या 261

    2. 1857 का स्वातंत्र्य समर विनायक दामोदर सावरकर, प्रभात प्रकाशन वर्ष 2007 पृष्ट संख्या 263 

    3. 1857 का स्वातंत्र्य समर विनायक दामोदर सावरकर, प्रभात प्रकाशन वर्ष 2007 पृष्ट संख्या 264 

    4. 1857 की क्रांति के नायक बाबू कुँवर सिंह और उनके मुस्लिम साथियों की वीरगाथा। Heritage Times https://www.heritagetimes.in/babu-kunwar-singh-muslims

    5. PEER ALI KHAN | INDIAN CULTURE

    6. https://archives.bihar.gov.in/pdfjs/web/PDFviewer1.html?filename=19

    7. https://archives.bihar.gov.in/pdfjs/web/PDFviewer1.html?filename=23 

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Monday, February 12, 2024

History of Rampur and Nawabs --- (रामपुर और उसके नवाबों का इतिहास)

 रामपुर और उसके नवाबों का इतिहास 

                                                                           रावेंद्र प्रताप सिंह

 रामपुर भारतीय इतिहास का गौरव है, रामपुर का इतिहास जितना प्रासंगिक है, उतना ही नवाबों के शहर से भी संबन्ध रखता है. रामपुर और उसके नवाबों  ने देश की संस्कृति और विचारधारा पर लम्बे समय तक चलने वाली छाप छोड़ी है। भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान यह शहर पहली एक रियासत थी, जहां पर राजपूतों, मराठाओं, रोहिल्लाओं और नवाबों का शासन था और स्वतंत्र भारत से पहले यह स्वयं एक राज्य था. इससे पहले 1947 में इसे भारतीय गणराज्य  की सहमति दी गई थी और 1950 में यह संयुक्त प्रांतों के साथ मिल गया था। 

रामपुर नाम :- रामपुर अपनी धार्मिक पृष्ठभूमि और विविध इतिहास के बावजूद, रामपुर (जिले) के नाम से बुलाया या जाना जाता है, जो देश के अधिकांश शहरों को दिए जाने वाले सामान्य नामों में से एक है. रामपुर एक जिला है जिसमें चार गावों का समूह शामिल है इसे कटेहर कहा जाता है.नवाबों के शासनकाल के दौरान, रामपुर के पहले शासक नवाब फ़ैजुल्लाह खान ने शहर का नाम बदलकर फैज़ाबाद करने का प्रस्ताव रखा था, लेकिन देश में कई अन्य स्थानों को भी यही नाम दिया गया था, इसलिए इसे फैज़ाबाद की जगह मुस्तफाबाद कर दिया गया और इसे आमतौर पर रामपुर भी कहा जाता था। 

रामपुर की विरासत :- रामपुर का ज्ञात शाही इतिहास बारहवीं शताब्दी का है, जो राजपूतों के शासन से शुरू होता है और नवाबों की अंतिम विरासत के साथ समाप्त होता है. रामपुर के शासकों  का क्षेत्र की वास्तुकला पर अलग प्रभाव पड़ा है। इमारत और स्मारक मुगल प्रकार की वास्तुकला की उपस्थिति दर्शाता है। इमारतों में से कुछ बहुत पुरानी हैं  सबसे अच्छी तरह से डिजाइन स्मारक में से एक रामपुर का किला है ( रामपुर का किला)। पूर्व में  यहाँ रजा लाइब्रेरी या हामिद मंज़िल, शासकों के   महल रह चुके  है। यह ओरिएंटल पांडुलिपियों का एक बड़ा संग्रह है। इमामबाड़ा भी किले में है । जामा मस्जिद वास्तुकला के बेहतरीन नमूना  है । यह कुछ हद तक दिल्ली में जामा मस्जिद जैसी  दिखती  है और एक सुंदर इंटीरियर है। इसको नवाब फैज़ुलाह ख़ान ने बनवाया  था। यहाँ  अध्यन  के लिए एक अनूठा मुगल स्पर्श है। वहाँ मस्जिद के लिए कई प्रवेश  द्वार हैं। यहाँ  मुख्य द्वार पर एक  इनबिल्ट क्लॉक टॉवर ,(एक बड़ी घड़ी है )  जनपद में  कई प्रवेश बाहर के लियें  निकलें हैं.

रामपुर रज़ा लाइब्रेरी (पुस्तकालय ) :- रामपुर रज़ा पुस्तकालय दक्षिण एशिया के महत्वपूर्ण पुस्तकालयों में से एक है.विभिन्न धर्मों, परम्परओं से सम्बंधित पुस्तकों  आलावा यह इंडो-इस्लामिक ज्ञान और कला का खजाना है। इस पुस्तकालय की स्थापना नवाब फैजुल्लाह ख़ान द्वारा 1744 में की गई थी। रामपुर के नवाब विद्या और कला के महान संरक्षक थे, विद्वान उलेमाओं (ज्ञानी), कवियों, चित्रकारों, काशिदाकारों (कपड़े पर सुई और धागा या सूत के साथ अन्य सामग्री की हस्तकला ) और संगीतज्ञों पर उनकी महान अनुकम्मा थी. भारत की स्वतंत्रता के बाद जब रामपुर विरासत का विलय भारत गणराज्य में हो गया तो इस पुस्तकालय का संरक्षण एक न्यास के अंतर्गत आ गया जिसकी स्थापना 6 अप्रैल 1951 को हुई थी। इस पुस्तकालय में अरबी, फ़ारसी, पश्तों, संस्कृत, उर्दू, हिंदी और तुर्की भाषाओं की 17,000 पांडुलिपियाँ मौजूद है. इसके  आलावा इसमें विभिन भारतीय भाषाओं में चित्रों और ताड़ पत्रों का अच्छा संग्रह भी है। साथ ही साथ विभिन्न भारतीय और विदेशी भाषाओं के लगभग 60,000 मुद्रित पुस्तकों का संग्रह भी यहाँ उपलब्ध है।

 रज़ा लाइब्रेरी (पुस्तकालय) रामपुर

  1. भारत सरकार के पूर्व शिक्षा मंत्री सैय्यद नरुल हसन द्वारा इस पुस्तकालय को 1 जुलाई 1975 को पुस्तकालय अधिनियम के तहत संसद में लाया गया.

  2. पुस्तकालय में 30,000 से अधिक पुस्तकों और कई भाषाओं की पत्रिकाओं का संग्रह है.

  3. रज़ा लाइब्रेरी (पुस्तकालय) दक्षिण एशिया के मुख्या पुस्तकालयों में से एक है.

  4. विभिन्न धर्मों, परम्परओं से सम्बन्धित कार्यो के अतिरिक्त यह भारतीय - इस्लामी अध्ययन और कलाओं खज़ाना भी है.

  5. यहाँ पर हिंदी, संस्कृत, उर्दू, तमिल, तुर्की और पश्तों साहित्य जैसी दुर्लभ पुस्तकों का खज़ाना रज़ा लाइब्रेरी (पुस्तकालय) में उपलब्ध है. पवित्र कुरान का पहला हस्तलिपि अनुवाद भी यहाँ हुआ है.   

    ज़ियाउद्दीन बरनी की तारीख - ए - फ़िरोज़शाह

                                          ज़ियाउद्दीन बरनी की सहीफ़ा - ए - नात - ए -मुहम्मदी  

    रामपुर रियासत :-  रामपुर की स्थापना उत्तर प्रदेश में रोहिलओं के प्रमुख सरदार दाऊद खान के दत्तक पुत्र अली मुहम्मद खान ने की थी। रोहिल्लाजिन्होंने 18 वीं शताब्दी में भारत में प्रवेश किया, उस दौरान मुग़ल साम्राज्य का पतन हो रहा था, जिसके चलते इन्होने रोहिलखंड जिसे कठेर के नाम से जाना जाता था उस पर नियंत्रण कर लिया। 1737 में नवाब अली मुहम्मद खान ने सम्राट मुहम्मद शाह से कठेर का क्षेत्र प्राप्त कर लिया, 1746 में अवध के नवाब वज़ीर ने अपना सब कुछ खो दिया. अगले दो शताब्दियों में रामपुर के राजघराने, जो पहले एक युद्धरत कबीले थे इन्होने यहाँ पर अपने गहरी जड़े जमा ली और अंग्रजों की मेहरबानी से, देश में सबसे अमीर रियासतों में से एक का उदय हुआ.

    1775 में नवाब फ़ैज़ुल्लाह खान ने रामपुर शहर बसाया. मूलरूप से यह राजा राम सिंह के नाम काथेर नामक चार गावों का एक समूह था. पहले नवाब ने इस शहर का नाम 'फैज़ाबाद' करने का प्रस्ताव रखा लेकिन और भी कई जगहों का नाम फैज़ाबाद था, इसलिए इसका नाम 'मुस्तफ़ाबाद' उर्फ़ 'रामपुर' कर दिया गया। नवाब फैज़ुल्लाह खान ने 20 वर्षो तक यहां शासन किया, उनकी मृत्यु के बाद उनके बेटे मुहम्मद अली खान ने पदभार संभाला, 24 दिनों के बाद रोहिल्ला नेताओं ने उसे मार डाला और मृतक के भाई गुलाम मुहम्मद खान को नवाब घोषित किया। ईस्ट इंडिया कम्पनी ने 3 महीने और 22 दिनों के शासनकाल के बाद गुलाम मुहम्मद खान को पराजित किया, और गवर्नर - जनरल ने दिवंगत मुहम्मद अली खान के पुत्र अहमद अली खान  बनाया। जिसने 44 वर्षों शासन किया, उनका कोई पुत्र नहीं था इसलिए गुलाम मुहम्मद खान के पुत्र मुहम्मद सईद खान ने नए नवाब के रूप में पदभार संभाला, उन्होंने एक नियमित सेना का गठन किया, न्यायालयों की स्थापना की और किसानों की आर्थिक स्थिति में सुधर के लिए कई कार्य किए. उनके बेटे मुहम्मद युसूफ अली खान ने उनकी मृत्यु के बाद पदभार संभाला।  1865 में युसूफ अली खान की मृत्यु के बाद उनके पुत्र कल्ब अली खान नए नवाब बने, नवाब कल्ब अली खान अरबी और फ़ारसी में साक्षर थे. उनके शसनकाल में राज्य ने शिक्षा के स्तर को ऊपर उठाने के लिए बहुत काम किया। वह लॉर्ड जॉन लॉरेंस के वायसराय के दौराम परिषद् के सदस्य भी थे.

     उन्होंने रामपुर में 3,00000 रुपए में ज़मा मस्जिद का निर्माण कराया था. उन्हें प्रिंस ऑफ वेल्स द्वारा आगरा में नाइट की उपाधि भी दी गई थी, उन्होंने 22 वर्ष 7 महीने तक शासन किया उनकी मृत्यु के बाद उनके बेटे मुश्ताक अली खान ने पदभार संभाला, इन्होने अपने शासनकाल में कई नए भवन और नहरों का निर्माण करवाया. मुश्ताक अली के बाद नवाब हामिद अली 14 वर्ष की उम्र में 1889 में नए शासक बने. उनके शासनकाल में कई नए स्कूल खोले गए। 1905 में उन्होंने किले के अंदर शानदार दरबार हॉल का निर्माण किया, जिसमें अब रामपुर रज़ा लाइब्रेरी (पुस्तकालय)  द्वारा रखी गई पाण्डुलिपियों ला बड़ा संग्रह है, उनके बेटे रज़ा अली खान 1930 में अंतिम शासक एवं नवाब थे, नवाब रज़ा अली के अधीन रामपुर 1949 में भारत में शामिल होने वाला पहला राज्य बना, जो उत्तर प्रदेश का एकमात्र मुस्लिम बहुल जिला बन गया, नवाब ने आधिकारिक शाही निवास रामपुर किला जिसे 1775 में बनाया गया था उसे भारत सरकार को सौंप दिया, साथ ही कई अन्य सम्पतियों जैसे कि शाही परिसर, जिसे अब जिला कलेक्ट्रेट और नगर मजिस्ट्रेट के कार्यालय के रूप में उपयोग किया जाता है. 1966 में जब रज़ा अली  मृत्यु हुई, तो उनकी तीन पत्नियां, तीन बेटे और छः बेटियाँ थी उनके सबसे बड़े बेटे मुर्तज़ा अली खान ने उन्हें परम्परा के अनुसार राज्य के प्रमुख के रूप में उत्तराधिकारी बनाया, सरकार ने उन्हें उनके पिता की सभी निजी सम्पत्तियों में एकमात्र उत्तराधिकारी के रूप में मान्यता दी, और इस आशय का एक प्रमाण पत्र जारी किया। रामपुर में अमीर रज़ा पुस्तकालय चलते थे, जिसे कभी नवाब के आधिकारिक दरबार के रूप में जाना जाता था. रज़ा लाइब्रेरी (पुस्तकालय) में अरबी, उर्दू, फ़ारसी और तुर्की में लगभग 15,000 पांडुलिपियों के साथ-साथ सातवीं शताब्दी के कुरान का घर कहा जाता था, पुस्तकालय में इस्लामी सुलेख के 2,500 नमूने, 5000 लघु चित्र और 60,000 मुद्रित पुस्तकें है, इसके अलावा वाल्मीकि की रामायण का अत्यंत दुर्लभ फ़ारसी अनुवाद भी है, जिसके बारे में माना जाता है कि यह सम्राट औरंगज़ेब की व्यक्तिगत प्रति थी। 20 वीं सदी में उन्होंने चीनी और कपडा मिलों की स्थापना की राज्य में कई हिन्दू वरिष्ठ प्रशानिक पदों पर कार्यरत थे.

    रामपुर राज्य का राज्य चिन्ह

    रामपुर के नवाबों का शासनकाल  

    1. फ़ैज़ुल्लाह खान -- 15 सितम्बर 1748 से 24 जुलाई 1793 

    2. हाफ़िज़ रहमत खान (राज्य प्रतिशासक) --- 15 सितम्बर 1748 से 23 अप्रैल 1774 

    3. मुहम्मद अली खान बहादुर -- 24 जुलाई 1793 से 11 अगस्त 1793 

    4. गुलाम मुहम्मद खान -- 11 अगस्त 1793 से 24 अक्टूबर 1794 

    5. अहमद अली खान -- 24 अक्टूबर 1794 से 05 जुलाई 1840 

    6. नसरुल्लाह खान (राज्य प्रतिशासक) -- 24 अक्टूबर 1794 से 5 जुलाई 1811 

    7. मुहम्मद सैद खान बहादुर -- 5 जुलाई 1840 से 1 अप्रैल 1855 

    8. युसुफ अली खान बहादुर -- 1 अप्रैल 1855 से 21 अप्रैल 1865 

    9. क़ब्ल अली खान -- 21 अप्रैल 1865 से 23 मार्च 1887 

    10. मुहम्मद मुश्ताक अली खान -- 25 मार्च 1887 से 25 फरवरी 1889 

    11. हामिद अली खान -- 25 फ़रवरी 1889 से 20 जून 1930

       नवाब फैज़ुल्लाह खान (रामपुर)

      हाफिज रहमत खान के मकबरे को दर्शाता चित्र

                                                   इमामबाड़ा फोर्ट (रामपुर)

                                                           ख़ुसरूबाग (रामपुर)

                 नवाब क़ब्ल अली खान 1865 - 1887

      मस्जिद मक़बरा जनाबे आलिया :-  यह मस्जिद मक़बरा जनाबे आलिया के निकट स्थापित है। इसकी स्थापना नवाब हामिद अली खाँ के काल में चुने - गारे और लखौरी ईंट के प्रयोग से की गयी थी। यह एक छोटी सी सुन्दर मस्जिद है, जिसके तीन मेहराबी दर और इसके ऊपर तीन गुम्बद स्थापित है, जिसके ऊपर कलश एवं पीतल की लम्बी बुर्जी का प्रयोग किया गया हैं। इसके चारों कोनों पर एक-एक सुन्दर मीनारें स्थापित है मस्जिद के सामने के भाग में बड़ी सुन्दर बुर्जी और उसके साथ गुम्बद आकृति के पैरापेट का प्रयोग किया गया है। इस मस्जिद में पाँचो वक्त की नमाज़ होती है.

      मक़बरा जनाबे आलिया परिसर, रामपुर 

      मस्जिद-ए-दारोगा महबूब जान :- इस मस्जिद  स्थापना 1901 ई० दारोगा महबूब जान ने कराई थी.जिसकी स्थापना चुने-गारे और लाखौरी ईंटे के प्रयोग से की गई है। इस मस्जिद के सामने के भाग में एक विशाल बरामदे की स्थापना की गई है। जिसके ऊपर छज्जे निकाल कर उसके ऊपर बुर्जी स्वरुप का पैरापेट का प्रयोग किया गया है जिसके दोनों ओर विशाल मीनार स्थापित है। इसके मध्य भाग में विशाल गुम्बद स्थापित है. जिसके ऊपर कलश और कलश के ऊपर 16 बुर्जियों का प्रयोग किया है, जिस के मध्य भाग में सुंदरता हेतु पीपल की छतरी एवं उसके ऊपर पीतल की बुर्जी का प्रयोग किया गया है मस्जिद के चारों कोनों पर बुर्जी स्वरुप के मीनार स्थापित हैं। इस मस्जिद निर्माण स्वरुप अत्यन्त प्रभावी है। इसमें पाँचों वक्त की नमाज़ अदा की जाती है। 

       प्रसिद्ध ख़लीफ़ा :- 

      1. मुल्ला मुहम्मद या मियाँ उर्फ़ मुहम्मद शाह 

      2. शाह कमालुद्दीन 

      3. मौलवी मोहम्मद नईम मियाँ उर्फ़ नईम शाह 

      4. शाह हबीब 

      5. शाह अब्दुल वहाब 

      6. मियाँ गुलाम हुसैन शाह 

      7. इमामुद्दीन ख़ाँ 

      8. शाह अबूसईद 

         

        • ''ख़लीफ़ा का अर्थ -- पैगंबर का उत्तराधिकारी या उत्तराधिकारी''

        • ''बुर्जी का अर्थ -- छोटा गुम्बद''

        • ''पैरापेट का अर्थ -- रेलिंग, बालकनी या एक छत''


      दिल्ली सल्तनत काल 1206 - 1526 ई० के मध्य इस क्षेत्र की स्थिति :- सन्न 1192 ई० में गौर के सुल्तान मुहम्मद ग़ौरी ने दिल्ली के राजा पृथ्वीराज चौहान को परास्त कर हिंदुस्तान में तुर्की शासन की नीव रखी। उसके सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने शीघ्र ही इस क्षेत्र के बदायूँ पर आक्रमण करके यहाँ भी युर्की साम्राज्य का अधिकार स्थापित किया। उस समय इस क्षेत्र में राजपूतों का प्रभाव था। 

      लगभग तीन सौ वर्षों तक यहाँ विभिन्न वंशों के सुल्तानों का अधिकार रहा। कठेरिया राजपूतों के वर्चस्व के कारण ही यह क्षेत्र कठेर कहलाता था। यहाँ इन राजपूतों ने अपने विभिन्न क्षेत्रों में गढ़ ( दुर्ग ) स्थापित कर लिए। उस समय रामपुर का क्षेत्र  के अधिकार में था। पन्द्रहवीं शताब्दी ई० के प्रारम्भ में राव (राजा) हरसिंह देव ने इस इलाके पर अपना अधिकार बढ़ा लिया था। उसके बाद उनके बेटा यहाँ का राव बना उनके बेटे राम सिंह के बारे में जनश्रुति है कि उसने यहाँ रामपुरा की स्थापना की। ऐसा भी कहा जाता है कि जहाँ वर्तमान राजद्वारा मोहल्ला है वह पुराना रामपुर था।

       

       

         


       संदर्भ :-

      1. मैं रामपुर हूँ रामपुर का इतिहास एवं संस्कृत, संजय प्रकाशन दिल्ली 2020, डॉ० मोहम्मद हिफज़ुर्रहमान, पृष्ठ संख्या 02

      2. मैं रामपुर हूँ रामपुर का इतिहास एवं संस्कृत, संजय प्रकाशन दिल्ली 2020, डॉ० मोहम्मद हिफज़ुर्रहमान, पृष्ठ संख्या 28

      3. मैं रामपुर हूँ रामपुर का इतिहास एवं संस्कृत, संजय प्रकाशन दिल्ली 2020, डॉ० मोहम्मद हिफज़ुर्रहमान, पृष्ठ संख्या 29

      4. मैं रामपुर हूँ रामपुर का इतिहास एवं संस्कृत, संजय प्रकाशन दिल्ली 2020, डॉ० मोहम्मद हिफज़ुर्रहमान, पृष्ठ संख्या 69

      5.  https://ignca.gov.in/coilnet/ruh0047.htm (स्थापत्य निर्माण) दिनाँक 11/01 /2024 समय 10:51AM

      6.  https://rampur.nic.in/hi (रामपुर जिले के बारे में उत्तर प्रदेश) दिनाँक 21/11/2023 समय 02:41AM 

      7. https://bharatdiscovery.org/india  (रज़ा पुस्तकालय रामपुर उत्तर प्रदेश) दिनाँक 21/11 /2023 समय 02:57AM

      8. https://prarang.in/rampur/razalibrary.php  (रज़ा लाइब्रेरी) दिनाँक 22/11/2023 समय 01:53PM 

      9. https://indianculture.gov.in/hi/MoCorganization/raamapaura-rajaa-laaibaraerai (भारतीय संस्कृति) दिनांक 25/12/2023 समय 03:46PM 

      10. https://indiaculture.gov.in/rampur-raza-library-rampur   दिनाँक 26/12/2023 समय 11:34PM

      11. https://www.rampuronline.in/city-guide/history-of-rampur (रामपुर का इतिहास)  दिनाँक 10/01/2024 समय 05:12PM