Thursday, January 11, 2024

दलित महिलाओं के विरुद्ध अपराधों का समाजशास्त्रीय अध्ययन।

दलित महिलाओं के विरुद्ध अपराधों का समाजशास्त्रीय अध्ययन
रावेंद्र प्रताप सिंह  
पूर्व छात्र भवन्स मेहता महाविद्यालय भरवारी कौशाम्बी 

 सारांश-- हमारे समाज में दलित महिलाओं के साथ प्रतिदिन भेदभाव,अन्याय,शोषण,शारीरिक और मानसिक उत्पीड़न का शिकार होती है.उन्हें सम्मान समाज में कुछ फिसदी लोगों द्वारा मिलपाता है,जबकि उन्हें हर मोर्चे पर पुरुषों के अहम् का शिकार होना पड़ता है,फिर चाहे वह घर में हो,परिवार में हो,दफ़्तर में हो,खेत खलियान हो या फिर पंचायत हो उन्हें हर जगह जिल्लत का सामना करना पड़ता है और इंसानियत को तार पर रख हैवानियत से भरे नर-पिशाचों की शैतानी,भूख और षड़यंत्र का शिकार होना पड़ता है.

प्रस्तावना-- दलित महिलाओं को स्थिति तो सबसे ज्यादा बुरी है क्योंकि जाति के अहम् में पुरुष दलित महिलाओं को खिलौने से ज्यादा कुछ नहीं समझता है.मैंने यहाँ पर कुछ ऐसे प्रकरणों या घटनाओं का उल्लेख किया है। जैसे डायन कह कर जला देने वाली घटनाएं,निर्वस्त्र करके घुमाने की घटनाएं,प्रेम सम्बन्ध के कारण मार डालने की घटनाएं,बलात्कार इत्यादि घटनाएं हमारे समाज अखबारों और लेखो द्वारा सामने आती है.उदहारण में मैं कुछ घटनाओं का यहाँ चर्चित करता हु सहारनपुर जिले में थाना गंगोह के अंतर्गत मोहड़ा में बुद्ध नाम के दलित व्यक्ति कि 14 वर्षीय पुत्री सीमा का बलात्कार के बाद गला घोटकर हत्या कर दी गयी.उत्तर प्रदेश में बीते 3 नवम्बर 2023 को बाँदा जिले के गिरवां थाना क्षेत्र में 40 वर्ष की एक दलित महिला के साथ दुष्कर्म, 9 मई को उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले के अमरिया थाना क्षेत्र के गांव में 3 वर्षीय दलित बच्ची को खेत से उठा लिया और उसका बलात्कार किया गया.बीते पंद्रह वर्षों में दलित महिलाओं पर हुए अत्याचारों की ऐसी प्रमुख घटनाऐं है जो अखबारों,पत्रिकाओं की सुर्खियों पर बनी होती है जबकि दलित महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों की सूची काफ़ी लम्बी है इनकी संख्या तो हजारों में है जो हमारे समाज की वास्तविक स्थिति को दर्शाता है.29 सितम्बर 2020 को उत्तर प्रदेश सरकार एक बार फिर दलित महिलाओं और लड़कियों को उनके अधिकारों और सुरक्षा को बनाए रखने में विफल रही.14 सितम्बर को उत्तर प्रदेश के हाथरस में हुई घटना ने एक बार फिर इस देश में दलित महिलाओं द्वारा सामना किए जाने वाले जाति अधारिक यौन उत्पीड़न की कठोर वास्तविकताओं को उजागर किया यह एक कड़वा सच है कि अधिकांश बलात्कार की घटनाएं दलित महिलओं और लड़कियों के साथ होती है इसमें कोई दो राय नहीं है कि यथार्थ में दलित महिलाओं के साथ सवर्णों द्वारा अमानवीय व्यव्हार,अत्याचार,दुर्व्यवहार किये जाते है मानव प्रगति का आधार नारी ही है अपने जीवन को उसने कभी अपने लिए न दिया सदा ही अपनी भावना,अपनी ममता दूसरों के लिए लुटाती रही है अनेक कानूनों के बावजूद भी वह स्वयं को कितना आरछित महसूस कर रही है.इक्कीसवीं शताब्दी में भी हम नारी को उसी दृष्टिकोण से देखते रहेंगे जब हमारे देश में शिक्षित लोग बहुत कम थे परन्तु आज हमारे देश में शिक्षित वर्ग 65% से अधिक होने को है.महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधो को रोकने के लिए कानून और उसके तहत की जाने वाली कार्यवाही की बात है तो सरकार ने अब तक जो कुछ कानून बनाये है उन्हें काम नहीं कहा जा सकता परान्त फिर भी महिलाओं के प्रति अपराध की घटनाएं नहीं रुक रही है क्योंकि सभी घटनाएं हमारी मानसिकता का परिचायक है।

महिलाओं के साथ उत्पीड़न--- महिलाओं के साथ हिंसा की समस्या कोई नई नहीं है। भारतीय समाज में महिलाएँ इतने लम्बे काल से अवमानना यातना और शोषण का शिकार रही हैं जितने काल के हमारे पास सामाजिक संगठन  पारिवारिक जीवन के लिखित प्रमाण उपलब्ध है। आज धीरे-धीरे महिलाओं को पुरुषों के जीवन में महत्पूर्ण प्रभावशाली और अर्थपूर्ण सहयोगी माना जाने लगा। इनमें से कुछ व्यावहारिक रिवाज आज भी पनप रहे है स्वाधीनता के पश्चात् हमारे हमारे समाज में महिलाओं के समर्थन में  बनाये गये कानूनों में महिलाओं में शिक्षा के फैलाव और महिलाओं की धीरे-धीरे बढ़ती हुई आर्थिक स्वतंत्रता  बावजूद असंख्य महिलाएं अब भी हिंसा  शिकार है। 

महिलाओं के विरुद्ध हिंसा का वर्गीकरण इस प्रकार से हो सकता है --

1. आपराधिक हिंसा-- बलात्कार,अपहरण,हत्या.

2. घरेलू हिंसा -- दहेज़ सम्बन्धी हत्या,पत्नी को पीटना,लैंगिक दुर्व्यहार,विधवाओं और वृद्ध महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार .

3. सामाजिक हिंसा --पत्नी /पुत्र वधु की भ्रूण हत्या के लिए बाध्य करना,महिलाओं को संपत्ति में हिंसा देने से इंकार करना,पुत्र वधु को और अधिक दहेज़ लाने के लिए सताना या बाध्य करना .