Wednesday, January 29, 2025

1857 की क्रांति में शहीद (सुरसी)

मध्य प्रदेश के आदिवादी (भील) परिवार में जन्मी सुरसी एक ऐसी महिला थीं, जिन्होंने अपने बेटे भीम नायक को अंग्रेजों के खिलाफ़ हथियार उठाने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने अपने बेटे के साथ मिलकर भील, भिलाल, मांडलोई और नायक आदिवासियों का एक संयुक्त मोर्चा बना कर अंग्रेजों को जोरदार टक्कर दीं. 08 फरवरी 1849 को सलोदा के स्थान पर अंग्रेजों के खिलाफ़ एक युद्ध में उन्हें बंदी बना कर मंडलेश्वर किले में कैद कर दिया गया, जहाँ 28 फरवरी 1859 को उनका देहांत हुआ। 

 

भीम नायक ने 1857 के बाद भी जंग जारी रखी और 1861 में ही अंग्रेज़ उन्हें पकड़ सके. उन्हें कालापानी की सजा दी गयी जहाँ उनको 29 सितंबर 1876 को फाँसी दे दी गयी। मध्य प्रदेश में एक सरकारी योजना, "शहीद भीमा नायक परियोजना" का नाम उनके नाम पर रखा गया है। मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मध्य प्रदेश के बड़वानी जिले के उनके पैतृक गांव ढाबा बावड़ी में एक "भीमा नायक स्मारक" समर्पित किया था। 21 जनवरी 2017.

 


 

Friday, January 24, 2025

उदा देवी की यकीन न आने वाली बहादुरी की दास्तान

आज़ादी के जंग में एक अकेली औरत के ज़रिए बहादुरी और कुर्बानी का एक ऐसा कारनामा अंजाम दिया गया जिस की कोई दूसरी मिसाल दुनिया की किसी भी अन्य जंग में मिलना मुश्किल है। उदा देवी की बहादुरी और कुर्बानी का आँखों-देखा हाल एक अंग्रेज़ फ़ौजी अफ़सर विलियम फॉरबेस मिषेल (William Forbes Mitchel) ने अपनी आत्म-कथा में लिखा है। यह वाक्या नवंबर 1857 अंत की है जब मिषेल की कमान में अंग्रेज़ी सेना ने सिकंदराबाद महल पर कब्ज़ा कर लिया था। उस के अनुसार-- 

सिकन्दरबाग महल के अंदर वाले दालान में एक पीपल का भारी पेड़ था जिस के नीचे तने के साथ ठंडे पानी के मटके रखे हुए थे। जब कत्ल-ए-आम लगभग खत्म हो गया था तो हमारे कई फ़ौजी पेड़ की छाओं में सुस्ताने और जबरदस्त प्यास को मटकों में रखे गए ठंडे पानी से बुझाने गए। देखा यह गया की इन में से कई पेड़ के नीचे मरे पड़े हैं....एक खास जगह पर इतनी सारी बिखरी लाशों की तरफ़ कप्तान डॉसन (Dawson) का ध्यान गया। गोलियों के निशान देखकर पता लगा की हर फ़ौजी को ऊपर से गोली मारी गयी है। 

यह देखकर वे पेड़ के नीचे से हट गए और  कुएकर वॉलेस (Quaker Wallace एक अंग्रेज़ मातहत अफ़सर) को यह मुआएन करने के लिया कहा कि किया कोई पेड़ के ऊपर बैठ है, क्योंकि पेड़ के नीचे पड़ी सब ही लाशों को ऊपर से निशाना बनाया गया था। वॉलेस ने अपनी बंदूक में गोलियां भरीं और पीछे हटकर ध्यान से पेड़ का जायज़ा लेना शुरू किया। वे फ़ौरन चिल्लाया 'जनाब मैं ने उसे देख लिया.... 

उस के फ़ौरन देखे गए शक्स पर गोली दागी और किसी को भी यकीन नहीं हुवा कि एक शरीर जिस ने चुस्त लाल जैकेट और गुलाबी रंग का पजामा पहना हुवा था नीचे गिरा। गिरने में जैकेट सीने की जगह से फट गयी थी जिस से पता चला कि वह औरत थी. वह पुराने अंदाज़ की भारी घुड़सवार सेना की 2 पिस्तौल से लेस थी, जिस में से एक भरी हुयी अब भी आधे से ज्यादा गोलियों से भरी थी। उस ने हमले की पूरी तैयारी की थी, पेड़ पर बैठने के लिए बाकायदा एक जगह बनाई थी। उस ने आधा दर्ज़न से ज्यादा फौजियों को मारा था. 

1857 की अनकही हैरत अंगेज़ दास्तानें  इस्लाम शम्सुल फ़ारोस  

Thursday, January 2, 2025

रामपाल मौर्य कौशांबी के स्वतंत्रता सेनानी


 

रामपाल मौर्य कौशांबी के स्वतंत्रता सेनानी

रावेंद्र प्रताप सिंह

इलाहाबाद विश्वविद्यालय

रामपाल मौर्य कौशांबी जिले के एक स्वतंत्रता सेनानी थे. उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और कौशांबी जिले में ब्रिटिश सरकार के खिलाफ कई आंदोलनों में भाग लिया।


रामपाल मौर्य एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी थे। इनका जन्म 1917 में अठसराय तहसील, सिराथु जिला, इलाहाबाद (जो अब कौशाम्बी जिले के नाम से जाना जाता है) में हुआ था। इनके पिता का नाम माधव प्रसाद मौर्य था. इलाहाबाद में महात्मा गांधी के साथ एक बैठक में भाग लेने के बाद, वह उनकी विचारधाराओं से बहुत प्रभावित हुए, जिसके कारण वह अपने परिवार से अलग हो गए और स्वतंत्रता संग्राम में शामिल हो गए। वह 1942 में महात्मा गांधी द्वारा शुरू किए गए अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन का हिस्सा बन गए, जहाँ उन्होंने जोश से "करो या मरो" का नारा लगाया। उन्होंने सविनय अवज्ञा के विभिन्न कृत्यों में भाग लिया, जैसे कि रेलवे ट्रैक काटना और बॉम्बे नहर को बाधित करना, जिसके परिणामस्वरूप उन्हें अंततः कारावास हुआ। रामपाल को इलाहाबाद जिले की नैनी जेल में नौ महीने के कठोर कारावास की सजा सुनाई गई। 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने और गुलामी की बेड़ियों से मुक्त होने के बाद, वह अपने गाँव अठसराय लौट आए और अपने परिवार के साथ फिर से जुड़ गए। भारत के स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान के सम्मान में, भारत सरकार ने 1972 में भारत की स्वतंत्रता की पच्चीसवीं वर्षगांठ के अवसर पर उन्हें ताम्रपत्र प्रदान किया। रामपाल मौर्य का 1980 में निधन हो गया। स्वतंत्रता की लड़ाई में उनके अमूल्य योगदान को हमेशा याद किया जाएगा और सम्मानित किया जाएगा।


स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कल्याण परिषद उत्तर प्रदेश लखनऊ द्वारा परिचय पत्र जारी किया गया.



रावेंद्र प्रताप सिंह

एम.ए  (इलाहाबाद विश्वविद्यालय)

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